मुझे इतनी “फुर्सत” कहाँ कि मैं तकदीर का लिखा देखुँ, बस अपनी माँ-पिता की ”मुस्कुराहट” देख कर समझ जाता हुँ की “मेरी तकदीर” बुलँद हैं।
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